हाईकोर्ट ने इस प्रस्तावित परिषद को व्यापक अधिकार दिए हैं, जिसमें राज्य के प्रेस क्लबों, पत्रकार संघों या यूनियन को मान्यता देने का अधिकार भी शामिल है. पत्रकार संगठनों का कहना है कि इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित हो सकती है.
समाचार एवं पत्रकार संगठनों ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को लेकर चिंता जताई है, जिसमें ब्लैकमेलिंग जैसी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल फर्जी पत्रकारों से निपटने की बात कही गई थी.
संगठनों का कहना है कि अदालत के इस आदेश का अनापेक्षित खामियाजा भुगतना पड़ सकता है और इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित हो सकती है और यह वास्तविक पत्रकारों के अधिकारों को हानि पहुंच सकता है.
मद्रास हाईकोर्ट ने 19 अगस्त के आदेश में तमिलनाडु सरकार से राज्य प्रेस परिषद का गठन करने को कहा था.
इस प्रस्तावित तमिलनाडु प्रेस परिषद (पीसीटीएन) की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज करेंगे और इसके सदस्यों में अनुभवी पत्रकार और सेवानिवृत्त आईएएस और आईपीएस अधिकारी होंगे.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट ने इस प्रस्तावित संगठन को व्यापक अधिकार दिए हैं, जिसमें राज्य में प्रेस क्लबों, पत्रकार संघों या यूनियन को मान्यता देने का अधिकार शामिल है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘इसके साथ ही यह परिषद इन प्रेस क्लबों, यूनियन या एसोसिएशन में चुनावों भी कराएगा.’
पीठ ने अपने आदेश में कहा था, ‘प्रेस परिषद द्वारा हर एसोसिएशन में एक निश्चित अवधि के भीतर चुनाव कराया जाना चाहिए और ऐसा नहीं होने पर कोई भी पत्रकार निकाय स्वत: ही परिषद के अधिकार क्षेत्र में आ जाएगा. इसके साथ ही अब सरकार को सीधे पत्रकारों को मकान आवंटित करने या उन्हें बस पास देने की मंजूरी नहीं होगी. इन लाभ के लिए अब आवेदन प्रेस परिषद के पास जाएगा और उचित आकलन के बाद ही इन्हें जारी किया जाएगा.’
पीठ ने कहा, ‘प्रेस परिषद के पास फर्जी पत्रकारों की पहचान करने और उनके खिलाफ संबंधित अधिकार क्षेत्र के पुलिस थानों में शिकायत दर्ज कराने की शक्ति होगी. फर्जी पत्रकारों के बारे में आमजन भी अपनी शिकायतें वेलफेयर बोर्ड को भेज सकते हैं, जिसकी जांच होने पर इस तरह के फर्जी पत्रकारों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी, क्योंकि इस तरह के पत्रकार समाज के लिए खतरे की तरह हैं.’
इसके साथ ही राज्य सरकार को प्रेस स्टिकर, पहचान पत्र जारी करने या मीडिया संगठनों को दिए जाने वाले अन्य लाभ तब तक देने की मंजूरी नहीं होगी, जब तक मीडिया संगठन अपने कर्मचारियों की संख्या, उनका वेतन या कर भुगतान की जानकारी न दे.
आदेश में कहा गया, ‘राज्य सरकार/प्रेस परिषद प्रिंट मीडिया, पत्रिकाओं या दैनिक समाचार पत्रों को तब तक प्रेस पहचान पत्र या मीडिया स्टिकर जारी नहीं करेगा, जब तक यह प्रमाण उपलब्ध नहीं कराया जाए कि उनके दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक समाचार पत्रों या पत्रिकाओं का सर्कुलेशन कम से कम 10,000 कॉपी है और इसी सर्कुलेशन के अनुपात के आधार पर प्रेस आईडी कार्ड की संख्या को बढ़ाया जा घटाया जाएगा.’
अदालत ने राज्य सरकार से इन निर्देशों का पालन करने और चार हफ्ते के भीतर रिपोर्ट दर्ज करने को कहा है.
पत्रकारों और उनके पत्रकार संगठनों ने चिंता जताई
द हिंदू ने संपादकीय में गैरकानूनी और गलत गतिविधियों में शामिल पत्रकारों की समस्याओं को वास्तविक समस्या बताने से सहमति जताते हुए कहा कि अदालत ने एक परिषद का गठन कर उसे शक्तियां देकर कुछ ऐसा किया है, जो आमतौर पर कानून द्वारा व्यापक विचार-विमर्श के बाद किया जाता है.
संपादकीय में कहा गया कि अदालत ने यह आदेश साफ मंशा से दिया है, लेकिन यह काफी चौंकाने वाला है कि न्यायिक निर्देश के द्वारा इस तरह के दूरगामी उपाय की मांग की गई.
वरिष्ठ पत्रकार एएस पनीरसेल्वम ने द न्यूज मिनट को बताया कि यह आदेश फर्जी पत्रकारों, एजेंडा आधारित खबरें आदि को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता और फेक न्यूज को फिल्टर करने की प्रक्रिया को भी जटिल बनाता है.
उन्होंने अदालत की मंशा की सराहना करते हुए कि आदेश पत्रकारों को लाभ और पत्रकार निकायों के प्रबंधन जैसे बाहरी कारकों को पत्रकारिता की गुणवत्ता और इसके कंटेंट जैसी मुख्य चिंताओं में मिला देता है.
उन्होंने कहा कि अगर अदालत का उद्देश्य फर्जी पत्रकारिता को खत्म करना है तो मीडिया के लिए अधिक सख्त और कठोर नियामक ढांचा बनाने के बजाय अलग दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए.
वहीं, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन ने जारी बयान में कहा कि वह फेक न्यूज और फर्जी पत्रकारों से निपटने के लिए अदालत की चिंता को समझ सकते हैं लेकिन यह भी देखना होगा कि इन उपायों से मीडिया को ही नुकसान नहीं पहुंचे.