उनके इसी स्वभाव के कारण मंत्रियों, अफसरों से लेकर पार्टी कार्यकर्ता तक उनसे दूर होते गए हैं।
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को फोन किया। तब मौर्य कोरोना से संक्रमित होने की वजह से क्वारंटाइन में थे और सरसरी तौर पर यही लगा कि प्रधानमंत्री ने उनका हाल-चाल जानने के लिए फोन किया होगा। लेकिन यूपी के राजनीतिक हालात पर नजर रखने वाले इस तर्क को बेमानी मानते हैं। वे बड़ा ही मौजूं सवाल करते हैं कि अगर ऐसा ही था तो मोदी ने संक्रमित होने वाले यूपी के अन्य मंत्रियों को फोन क्यों नहीं किया? वाकई, इसमें दम है, क्योंकि यूपी के दो मंत्रियों की कोविड से मौत हो चुकी है, लेकिन पीएम का फोन उनके परिवार वालों को नहीं गया।
फिर माजरा क्या था? साफ है, यह एक विशुद्ध सियासी कदम था और उद्देश्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह बिष्ट को संदेश देना था। कभी मुख्यमंत्री पद के दावेदार रह चुके मौर्य ने भी इस बात को जगजाहिर करने में जरा भी देर नहीं लगाई कि प्रधानमंत्री ने उन्हें फोन किया। उन्होंने फौरन ही ट्वीट कियाः “इतने व्यस्त होने के बाद भी आदरणीय प्रधानमंत्री ने आज फोन कर मेरा हाल-चाल जाना और स्वास्थ्य की दृष्टि से जरूरी सलाह दी। मुझे हमारे सर्वोच्च नेता पर अभिमान है। जब उन्होंने मेरा हाल पूछा तो मेरे शरीर में ऊर्जा की नई लहर दौड़ गई।”
बहरहाल, इस संदर्भ में कुई जानकारों का तो स्पष्ट मानना है कि मुख्यमंत्री के रूप में योगी के दिन अब गिनती के रह गए हैं। हालांकि, कुछ लोग सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि बेशक एक के बाद एक तमाम मीडिया घराने योगी आदित्यनाथ को ‘सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री’ बता रहे हैं, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि योगी न तो सबसे अच्छे मुख्यमंत्री हैं और न ही सबसे सक्षम, फिर भी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी के लिए योगी को हटाना आसान नहीं होगा।
आईआईटी इंजीनियर और जाने-माने लेखक चेतन भगत ने योगी के मुख्यमंत्री बनने पर टिप्पणी की थी कि यह तो ऐसा ही है जैसे क्लास के सबसे बदमाश बच्चे को क्लास का मॉनीटर बना दिया जाए। वैसे, यह जानी हुई बात है कि योगी 2017 में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कहीं नहीं थे। हकीकत तो यह है कि केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को शपथ लेने के लिए तैयार रहने को कह दिया गया था। लेकिन तब योगी की धमकियों के आगे बीजेपी ‘हाईकमान’ झुक गया था। आज भी गोरखपुर के बाहर उनका कोई खास निजी रसूख नहीं लेकिन अगर उन्हें कुर्सी छोड़ने को कहा गया तो वह बीजेपी के भीतर मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
महत्वाकांक्षी योगी की उम्र 48 साल है और वह खुद को भावी प्रधानमंत्री मानते हैं। स्वभाव से अक्खड़। लगता तो नहीं, पर प्रधानमंत्री मोदी को लेकर कहा जाता है कि वह अच्छे श्रोता हैं लेकिन योगी में सामने वाले की बात सुनने का जरा भी धैर्य नहीं। उनके इसी स्वभाव के कारण मंत्रियों, अफसरों से लेकर पार्टी कार्यकर्ता तक उनसे दूर हो गए हैं। उनके प्रशासन के अधिकारी कहते हैं कि योगी किसी की नहीं सुनते और जो चाहते हैं, वही करते हैं।
उनके व्यवहार से आजिज एक अधिकारी कहते हैं, “वह दिन-रात कभी भी, किसी भी समय, किसी को भी बुला सकते हैं। सारे फैसले वह खुद लेते हैं। हर चीज को अपने ही तरीके से सोचते हैं।” एक अन्य अफसर कहते हैं कि योगी चाहते हैं कि लोग उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लें, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में तो वह एकदम ही बेकार रहे हैं। योगी धर्मांध, धुर मुसलमान विरोधी और प्रतिशोधी व्यक्ति हैं, जो अपने दामन के दाग को मिटाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग तो करते ही हैं, डॉ. कफील खान-जैसे निर्दोष व्यक्ति को फंसा दतेे हैं।
हाथरस गैंगरेप पीड़िता की घटना से पहले योगी ने विशेष सुरक्षा बल के गठन की घोषणा की है। इस बारे में पूरा विवरण अभी आना बाकी है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि यह मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है। यूपी पुलिस में पहले से ही एसटीएफ है और ऐसे में एक नए विशेष बल के गठन को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। कांग्रेस नेता द्विजेंद्र त्रिपाठी का मानना है कि इस बल का इस्तेमाल पार्टी और पार्टी से बाहर उनके खिलाफ मुंह खोलने वालों को डराने-धमकाने में भी किया जाएगा।
बहरहाल, योगी जो भी कहें, कानून-व्यवस्था के लिहाज से यूपी देश के चंद सबसे बुरे प्रदेशों में है। योगी ने मुख्यमंत्री बनने से पहले से लेकर बाद भी हिंदुत्व ब्रिगेड को बढ़ावा दिया, लेकिन वह अपने चहेतों को भी बचा नहीं पा रहे। आरएसएस सदस्य और बागपत के पूर्व बीजेपी अध्यक्ष संजय खोखर की अगस्त में गोली मारकर हत्या कर दी गई। फरवरी में हजरतगंज में मोटरसाइकिल सवार लोगों ने विश्व हिंदू महासभा अध्यक्ष रंजीत बच्चन की गोली मारकर जान ले ली। हिंदू महासभा नेता और हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष को पिछले साल अक्तूबर में लखनऊ में उनके कार्यालय में गोली मार दी गई। एक-डेढ़ दशक पहले योगी ने जिस हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया था, उसके नेता संजय सिंह की पिछले सितंबर में बरेली में चाकू गोदकर हत्या कर दी गई।
और तो और, योगी के गढ़ गोरखपुर में ही 14 साल के बच्चे की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई। उसके पिता के पास जमीन बेचने से मिले पैसे थे और अपहरणकर्ताओं ने बच्चे के बदले फिरौती में एक करोड़ रुपये मांगे थे। जुलाई में 56 साल की महिला सोफिया बेगम ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर खुद को आग लगी ली और बाद में उसकी मृत्यु हो गई। उस महिला की जमीन कुछ लोगों ने हड़प ली थी और वह पुलिस की निष्क्रियता की ओर मुख्यमंत्री का ध्यान खींचना चाह रही थी।
योगी सरकार में पुलिस की गाड़ियों पर तो जैसे भूत सवार हो जाता है जो अपराधियों की जान लेकर ही शांत होता है। गैंगस्टर विकास दुबे को गिरफ्तार कर कानपुर ला रही पुलिस की तीन गाड़ियों के काफिले में वही गाड़ी पलटती है, जिसमें विकास दुबे होता है और उसके बाद पुलिसिया कहानी के मुताबिक वह भागने की कोशिश करता है और पुलिस की गोली से मारा जाता है। गौरतलब है कि एक ही दिन पहले विकास दुबे के साथी कार्तिकेय की भी ‘मुठभेड़’ में मौत हुई थी। उसे भी गिरफ्तार करके पुलिस कानपुर ला रही थी कि रास्ते में टायर पंक्चर हो जाने से गाड़ी पलट गई और पुलिस की पिस्तौल छीनकर भाग रहे कार्तिकेय की मुठभेड़ में मौत हो जाती है। पूरी फिल्मी कहानी!
हालत यह है कि बीजेपी कार्यकर्ता भी मानते हैं कि योगी एक सामंतवादी शासक जैसा व्यवहार करते हैं। लंबे समय से बीजेपी के लिए काम करने वाले दो कार्यकर्ता दिल पर हाथ रखकर कहते हैं कि योगी के कामकाज से उन्हें बेहद निराशा हुई। वे भी इन अटकलों की पुष्टि करते हैं कि पार्टी के भीतर योगी को चलता किए जाने की बात हो रही है। हाथरस कांड में तो राज्य सरकार ने अपने आप को हंसी का पात्र ही बना लिया है।
पहले सरकार दावा करती है कि पीड़िता के साथ गैंगरेप की बात झूठी है। फिर पीड़िता के परिवार को मुआवजे की पेशकश की जाती है और लड़की ने जिन चार लोगों के नाम लिए, उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और अदालत में मामले की सुनवाई से पहले ही इन गिरफ्तार लोगों को बेकसूर बता दिया जाता है। जिस अमानवीय तरीके से पुलिस ने परिवारवालों के विरोध के बावजूद रात के अंधेरे में पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार कर दिया, वह रहस्य को और गहरा देता है।
योगी की पुलिस राष्ट्रीय लोकदल नेता जयंत चौधरी और उनके समर्थकों की पिटाई कर देती है जब वे मीडिया से मुखातिब थे। वह आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को स्याही हमले का शिकार होने से नहीं बचा पाती। जब उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह दावा करती है कि यूपी और इसके मुख्यमंत्री को बदनाम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत हाथरस कांड को अंजाम दिया गया, तो जैसे सारी हदें टूट जाती हैं। योगी खुद जाति से ठाकुर हैं और उनपर अक्सर अपनी जाति के लोगों की तरफदारी और समाज को जातीय आधार पर बांटने के आरोप लगते हैं।
जड़ की बात यह है कि 21वीं सदी में उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री के तौर पर सामंतवादी सोच वाले अनाड़ी की तुलना में एक योग्य व्यक्ति द्वारा शासित होना चाहता है। तो क्या योगी के लिए चला-चली की बेला है!