पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा के लिए पहले दौर में 77 सीटों के लिए मतदान खत्म हो गया। पहले दौर में दोनों ही राज्यों में मतदाताओं में जबरदस्त उत्साह देखा गया। चुनाव आयोग के मुताबिक शाम 6 बजे तक पश्चिम बंगाल में 79.79 फीसदी और असम में 72.14 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। कोरोना संक्रमण को देखते हुए मतदान का समय एक घंटे अधिक रखा गया था। पहले दौर में हुई बंपर वोटिंग से कई किस्म के कयास लगने लगे हैं।
ओपीनियन पोल्स में तो पहले दिन से ही आंकड़े ममता का पलड़ा भारी दिखा रहे हैं, हालांकि कुछ ने बंगाल बीजेपी और तृणमूल के बीच कांटे की टक्कर का अनुमान भी जताया है। लेकिन पहले दौर में हुए भारी मतदान के पीछे क्या संदेश है। इससे किसे फायदा होगा, क्या ममता तीसरी बार पश्चिम बंगाल की बागडोर संभालेंगी या फिर बीजेपी ऐतिहासिक उलटफेर करते हुए भगवा फहराएगी?
वैसे तो बंगाल का इतिहास अधिक मतदान का रहा है, लेकिन आमतौर पर धारणा यह है कि बंपर वोटिंग को सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ जनादेश माना जाता है। हालांकि कई बार यह धारणा गलत भी साबित हुई है। बंगाल इस मामले में अनोखा रहा है, 1996 के विधानसभा चुनाव में बंगाल में करीब 83 फीसदी वोटिंग हुई थी, लेकिन फिर भी नतीजा सत्ताधारी सीपीएम के ही हक में गया था। इसी तरह 2006 में भी बंगाल में करीब 82 फीसदी वोट पड़े थे लेकिन फिर सत्ताधारी सीपीएम ने ही बाजी मारी थी।
लेकिन 2011 के चुनाव में बंगाल में ममता बनर्जी ने लेफ्ट के लाल किले को ढहा दिया। इसके बाद 2016 के विधानसभा चुनाव में करीब 84 फीसदी वोटरों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया, लेकिन सत्ता में वापसी ममता बनर्जी की ही हुई।
लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी का मुकाबला राज्य के मुख्य विपक्षी दल के बजाए बीजेपी से है, जिसका मौजूदा विधानसभा में सिर्फ एक ही विधायक है। हालांकि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतकर अपना जनाधार मजबूत करने का संदेश दे चुकी है। इसी दम पर बीजेपी ममता बनर्जी को उखाड़ने के दावे भी कर रही है।
लेकिन पहले दौर में ही 82 फीसदी मतदाताओं का पोलिंग बूथ तक आना मिला-जुला संकेत देता है और विश्लेषकों की मानें तो इसका फायदा ममता बनर्जी की तृणमूल को ही हो सकता है। उनका तर्क है कि अधिक मतदान का अर्थ है कि दोनों ही दलों को वोटरों में उत्साह है लेकिन वोटिंग में हिस्सेदारी तृणमूल के समर्थकों की अधिक होने के संकेत सामने आए हैं। इसका कारण यह भी है कि तृणमूल के पास महिलाओं का अच्छा समर्थन है, यही कारण है कि ममता बनर्जी ने इस चुनाव में काफी बड़ी संख्या में महिलाओं को मैदान में उतारा है। हालांकि देहाती इलाकों और आखिर तक अपनी राय जाहिर न करने वाले वोटर निर्णायक साबित हो सकते हैं।