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जन्मदिन विशेष: खूबसूरती एक राज है, तन्हाई उनके साथ है, और एक नदी की तरह बहती जा रही हैं रेखा Featured

  10 October 2020

रेखा के अभिनय के बारे में कहा जाता है बहुरंगी, बिंदास, बोल्ड और बेहतरीन। उनके जीवन के बारे में टिप्पणी सुनने को मिलती है प्यार में बार-बार ठुकराई गई रहस्यमयी और तन्हा औरत। लेकिन अभिनेत्री रेखा के व्यक्तित्व के लिए ये सारे शब्द कम पड़ जाते हैं।

10 अक्टूबर 1954 को जन्मीं रेखा के पिता जेमनी गणेशन और मां पुष्पावती दक्षिण की फिल्मी दुनिया के बड़े नाम थे। दोनों काम में बेहद व्यस्त रहते थे। घर से उनकी लगातार अनुपस्थिती से नन्ही रेखा असुरक्षा की भावना और प्यार की तलाश में भटकते-भटकते बड़ी होने लगीं। इस बीच रेखा के मां-बाप के बीच मतभेद बढ़ने पर मां रेखा को लेकर अलग हो गयीं। कुछ कारणों से घर को अचानक आर्थिक तंगी ने जकड़ लिया।

जन्मदिन विशेष: खूबसूरती एक राज है, तन्हाई उनके साथ है, और एक नदी की तरह बहती जा रही हैं रेखा

अब रेखा को आर्थिक तंगी से मुकाबला करने के लिए काम करना जरूरी था। हांलाकि बाल कलाकार के रूप में 1966 में तेलगु फिल्म रंगुला रतलाम से रेखा रूपहले पर्दे का सफर शुरू कर चुकी थीं, वो भी मां के कहने पर। क्योंकि रेखा की फिल्मों में काम करने की कोई दिलचस्पी नहीं थी। 15 साल की उम्र में अभिनेत्री के तौर पर रेखा ने कन्नड़ फिल्म ‘ऑपरेशन जैकपाट सीआईडी 999’ से अपना डेब्यू किया। यह फिल्म हिंदी में भी ‘एजेंट 999’ के नाम से रिलीज हुई। रेखा ने इस फिल्म के साथ-साथ हिंदी फिल्म ‘अंजाना सफर’ में भी काम किया। लेकिन यह फिल्म काफी समय के बाद पूरी हुई और 1978 में ‘दो शिकारी’ के नाम से रिलीज हुई।

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एक हिट फिल्म कैसे किस्मत बदल देती है, यह बात रेखा से बेहतर कोई नहीं जानता। 1970 में उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘सावन भादो’ रिलीज हुई और सुपर हिट साबित हुई। कमसिन और भावनात्मक रूप से असुरक्षित रेखा पर्दे पर नवीन निश्चल जैसे खूबसूरत अभिनेता के साथ रोमांटिक सीन करते-करते उन्हें बहुत पसंद करने लगीं। लेकिन नवीन ने उनमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी। प्यार में पहली बार रेखा का दिल टूटा। सावन भादो की सफलता के बाद रेखा के पास फिल्मों की लाइन लग गयी। 1971 में रेखा की ‘ऐलान’, ‘साज़ और सनम’ तथा ‘हसीनों का देवता’ जैसी फिल्में आयीं।

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ऐलान’ की शूटिंग के दौरान भावनात्मक सहारा तलाश रहीं रेखा और विनोद मेहरा एक दूसरे के करीब आए। धीरे-धीरे ये रिश्ता शादी की हद तक पहुंच गया। उस दौर की पत्रिकाओं के मुताबिक विनोद मेहरा और रेखा ने मंदिर में शादी कर ली, लेकिन विनोद मेहरा की मां ने रेखा को नहीं स्वीकारा, बल्कि घर में घुसने तक नहीं दिया। विनोद मेहरा इस मामले को संभाल नहीं सके और फूट-फूट कर रोती हुई रेखा वहां से चली आयीं। रेखा की उम्र और अनुभव दोनों कम थे और बॉलीवुड में उनका कोई सहारा नहीं था। उनका हिंदी का उच्चारण भी ठीक नहीं हो पाया था। ये रिश्ता तो टूट गया लेकिन विनोद मेहरा ने रेखा या रेखा ने विनोद मेहरा के बारे में कभी कोई कड़वी बात नहीं कही। विनोद मेहरा कुछ सालों बाद उनसे दोस्त का बर्ताव करन लगे, लेकिन रेखा को सिर्फ दोस्त नहीं चाहिये था। उन्हें ऐसा सहारा चाहिये था जिसके साथ वो घर बसा सकें।

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विनोद मेहरा से रिश्ता टूटने के बाद रेखा को सहारा दिया किरण कुमार ने। बचपन से प्यार पाने की तीव्र चाहत रखने वाली रेखा किरण कुमार की इस हमदर्दी की वजह से फिर दिल हार गयीं। किरण कुमार भी रेखा से शादी करने को राजी हो गए, लेकिन किरन कुमार के पिता खलनायक जीवन को यह रिश्ता मंजूर नहीं हुआ। रेखा के हाथ फिर निराशा लगी। तब तक रेखा ने अपने हिंदी उच्चारण और लुक्स पर काफी मेहनत कर ली थी। वो अल्हड़ प्रेम और मादकता को पर्दे पर साकार करने वाली अदाकार के रूप में स्थापित हो चुकी थीं।

तभी रेखा के जीवन में अमिताभ की इंट्री हुई। रेखा शोहरत की बुलंदी पर होने के बावजूद शादी शुदा अमिताभ के सम्मोहन में जकड़ गयीं। जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि अमिताभ उनसे शादी नहीं करेंगे, लेकिन उनके लिये अमिताभ का साथ ही काफी था। अमिताभ रेखा से बड़े, अधिक पढ़े-लिखे और परिपक्व थे। वे रेखा को बार बार प्रोफेशनल होने की सलाह देते रहे। रोल चुनने में उनकी मदद करने लगे और उन्हें व्यवहार कुशलता सिखायी।

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रेखा को तो मानो पूरी दुनिया मिल गयी। लेकिन इस रिश्ते का अंत तो एक दिन होना ही था। फिल्म ‘कुली’ में अमिताभ को चोट लगने के बाद रेखा उन्हें देखने अस्पताल पहुंचीं। हांलाकि, वे अमिताभ से मिल नहीं सकीं, बस विजिटर बुक में अपनी शुभकामनाएं लिख कर वापस लौट आयीं और इसके बाद अमिताभ रेखा के रिश्ते पर विराम लग गया।
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रेखा को सब कुछ हासिल हो चुका था सिवाए एक परिवार के। परिवार बनाने की ख्वाहिश ने एक बार फिर रेखा के मन में जोर पकड़ा। उनकी मुलाकात दिल्ली के व्यवसायी अशोक अग्रवाल से हुई और पूरी दुनिया को हैरत में डालते हुए रेखा ने अचानक मुकेश से शादी कर ली। रेखा ने अपनी ख्वाहिश पूर कर ही ली, लेकिन सिर्फ शादी कर पायीं घर और परिवार नहीं मिल सका। शादी के सात महीने बाद मुकेश अग्रवाल ने आत्महत्या कर ली। शायद रेखा की किस्मत में परिवार का सुख नहीं था। वे स्थायी रूप से किसी से नहीं जुड़ सकीं।
जैसे-जैसे रेखा की उम्र बढ़ती गयी उनका सौंदर्य निखरता गया। कुछ साल बाद रेखा का नाम उनसे कम उम्र अभिनेताओं के साथ उछाला जाता रहा, लेकिन रेखा एक रहस्यमयी नदी की तरह बॉलीवुड में बहती रहीं। उन्होंने योगा, पेंटिंग और बागबानी को अपना दोस्त बना लिया, लेकिन उनकी सबसे पक्की सहेली है तन्हाई। आज रेखा अकेले होने और अकेले रह पाने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती हैं।

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