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उत्तर प्रदेश में ‘योगी राज’ में दलित उत्पीड़न चरम पर, सामंत-माफिया-धनबल की तिकड़ी है बड़ी वजह Featured

  09 October 2020

उत्तर प्रदेश में सरकार किसी की रही हो, दलित हिंसा के मामले बदस्तूर जारी रहने की मुख्य वजह यह है कि यूपी का सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवेश सामंतवादी रहा है।

जैसे इन आयामों में लोकतंत्र प्रवेश ही नहीं कर सका, इसलिए प्रशासनिक संरचना भी प्रकृतिवश सामंती है।

हाथरस की घटना मजबूर करती है कि दलितों के खिलाफ यूपी में हो रहे अत्याचार की जड़ में जाएं और यह देखने की कोशिश करें कि इसकी वजह कितनी सामाजिक, कितनी सियासी और कितनी प्रवृत्ति प्रेरित है। इसके लिए दलितों के खिलाफ हिंसा की जड़ों तक जाना जरूरी है।

उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ हिंसा की दर राष्ट्रीय दर से कहीं अधिक रही है। और यही बात 2019 की एनसीआरबी की रिपोर्ट से भी जाहिर होती है। योगीराज में भी उसी रुख के बरकरार रहने से यूपी की मौजूदा शासन प्रणाली पर सवाल तो उठते ही हैं। यूपी में सरकार किसी की भी रही हो, दलितों के खिलाफ हिंसा के मामलों के बदस्तूर जारी रहने की मुख्य वजह यह है कि यूपी का सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवेश सामंतवादी रहा है। इन आयामों में जैसे लोकतंत्र प्रवेश ही नहीं कर सका। इसीलिए प्रदेश की प्रशासनिक संरचना भी प्रकृतिवश सामंती है।

दूसरी ओर आजादी के बाद विकास के लिए पूंजी निवेश की प्रक्रिया ने एक नए तरह के माफिया को जन्म दिया, जिसने सामंतवादी ताकतों के साथ मिलीभगत करके राजनीतिक सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। यह एक जानी हुई बात है कि चाहे पार्टी कोई भी हो, अमूमन सामंती प्रवृत्ति को पालने पोसने वाले, माफिया और धनबल की त्रयी हावी रही और इस स्थिति में रही कि अपने हिसाब से पार्टी को ढाल सके, मनमानी कर सके। यही वजह है कि सत्ता परिवर्तन के बाद भी उनका सियासी रसूख कम नहीं हो सका। 

उत्तर प्रदेश में दलितों, महिलाओं और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के खिलाफ लगातार हो रहे अत्याचार के लिए मुख्यतः यही कारक जिम्मेदार हैं। प्रदेश की एक बड़ी त्रासदी यह भी है कि सामंती, माफिया और धनबल के गठजोड़ के खिलाफ जमीनी स्तर पर बिहार की तर्ज पर कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो सका। बिहार में नक्सल और किसान आंदोलन ने इस गठजोड़ के खिलाफ आवाज बुलंद की। एक और अफसोस की बात है कि यूपी की दलित राजनीति ने भी इन्हीं ताकतों की मदद से सत्ता का उपभोग किया जिसकी वजह से इस गठजोड़ की जड़ें मजबूत रहीं।

अब बात योगी आदित्यनाथ के बीजेपी राज में दलित विरोधी इस खतरनाक गठजोड़ के फलने- फूलने की। बीजेपी की तानाशाह प्रकृति वाली सत्ता में सामंतवादी ताकतों, माफिया और धनबल का यह दलित विरोधी गठजोड़ और मजबूत हो गया है। सच्चाई तो यह है कि इस गठजोड़ का मुकाबला वामपंथी लोकतांत्रिक ताकतें ही कर सकती हैं न कि कोई और पार्टी या फिर दलितों की राजनीति करने वाली भीम आर्मी या फिर बहुजन समाज पार्टी जो सत्ता की राजनीति में ही जुटी रहती हैं।

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