IndiaMirror Hindi https://hindimirror.net Thu, 21 Nov 2024 10:07:36 +0000 Joomla! - Open Source Content Management en-gb देश में समाचार चैनलों का एक वर्ग हर चीज़ को सांप्रदायिकता के पहलू से दिखाता है: सुप्रीम कोर्ट https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/178-2021-09-03-22-17-22.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/178-2021-09-03-22-17-22.html

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वेब पोर्टल किसी भी चीज़ से नियंत्रण नहीं होते हैं. ख़बरों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है और यह एक समस्या है.

अंतत: इससे देश का नाम बदनाम होता है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिल्ली में तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम और कोविड-19 के प्रसार पर इसके प्रभाव को लेकर फ़र्ज़ी और सांप्रदायिक खबरें प्रसारित करने के ख़िलाफ़ दाख़िल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया मंचों और वेब पोर्टल्स पर फर्जी खबरों पर बृहस्पतिवार को गंभीर चिंता जताई और कहा कि मीडिया के एक वर्ग में दिखाई जाने वाली खबरों में सांप्रदायिकता का रंग होने से देश की छवि खराब हो रही है.

देश की राजधानी दिल्ली में पिछले साल मार्च महीने में तबलीगी जमात के कार्यक्रम और कोविड-19 के प्रसार पर इसके प्रभाव को लेकर फर्जी और सांप्रदायिक खबरें प्रसारित करने के खिलाफ दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीते दो सितंबर को इस तथ्य पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और डिजिटल पोर्टल्स के माध्यम से जरा-सी पड़ताल के साथ झूठी खबर फैलाई जाती है.

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ फर्जी खबरों के प्रसारण पर रोक के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज में तबलीगी जमात की धार्मिक सभा से संबंधित ‘फर्जी खबरें’ फैलाने से रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है.

जमीयत ने इस धार्मिक सभा से संबंधित ‘फर्जी खबरों’ को फैलाने से रोकने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की है.

जमीयत ने आरोप लगाया कि तबलीगी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल पूरे मुस्लिम समुदाय को ‘बुरा दिखाने’ तथा कसूरवार ठहराने के लिए किया जा रहा है तथा उसने मीडिया को ऐसी खबरें प्रकाशित/प्रसारित करने से रोकने का भी अनुरोध किया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया के दिग्गज तो न्यायाधीशों को भी जवाब नहीं देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया केवल ‘शक्तिशाली आवाजों’ को सुनता है और न्यायाधीशों, संस्थानों के खिलाफ बिना किसी जवाबदेही के कई चीजें लिखी जाती हैं.

पीठ ने कहा, ‘ट्विटर, फेसबुक या यूट्यूब… वे हमें कभी जवाब नहीं देते हैं और उनकी कोई जवाबदेही नहीं है. संस्थानों के बारे में उन्होंने खराब लिखा है. वे इसका जवाब नहीं देते और कहते हैं कि यह उनका अधिकार है. उन्हें केवल शक्तिशाली लोगों की परवाह करते हैं और न्यायाधीशों, संस्थानों या आम आदमी की नहीं, हमने यही देखा है. हमारा यही अनुभव है.’

निजामुद्दीन पश्चिम स्थित मरकज में 13 मार्च से 15 मार्च तक कई सभाएं हुई थीं, जिनमें सऊदी अरब, इंडोनेशिया, दुबई, उज्बेकिस्तान और मलेशिया समेत अनेक देशों के मुस्लिम धर्म प्रचारकों ने भाग लिया था.

देशभर के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में भारतीयों ने भी इसमें हिस्सा लिया था, जिनमें से कई कोरोना संक्रमित पाए गए थे. इसे लेकर मुस्लिम समुदाय पर कोरोना फैलाने का आरोप लगाया गया था.

तबलीगी जमात के कार्यक्रम शामिल लोगों को समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर एक दुष्प्रचार का सामना करना पड़ा, जहां उन्हें मरकज से पूरे भारत में अपने घरों में वापस लौटने के बाद ‘सुपर स्प्रेडर्स’ के रूप में प्रचारित किया गया.

इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता आईपीसी, महामारी रोग अधिनियम, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाया गया था. उनकी निंदा की सांप्रदायिक प्रकृति स्पष्ट थी, कुछ टीवी चैनलों ने ‘कोरोना जिहाद’ जैसी हेडिंग के साथ संबंधित समाचारों कवरेज का कवरेज किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि समाचार चैनलों का एक वर्ग सभी समाचारों को सांप्रदायिक लहजे के साथ दिख रहा था.

पीठ ने कहा, ‘समस्या यह है कि इस देश में समाचार चैनलों के एक वर्ग द्वारा हर चीज सांप्रदायिकता के पहलू से दिखाई जाती है. आखिरकार इससे देश की छवि खराब हो रही है. क्या आपने (केंद्र) इन निजी चैनलों के नियमन की कभी कोशिश भी की है.’

पीठ ने इस संबंध में यूट्यूब चैनलों द्वारा निभाई गई भूमिका पर भी प्रकाश डाला.

 

पीठ ने कहा, ‘अगर आप यूट्यूब पर जाते हैं तो एक मिनट में इतना कुछ दिखाया जाता है. आप देख सकते हैं कि वहां कितनी फर्जी खबरें हैं और कोई भी इसे शुरू कर सकता है. वेब पोर्टल किसी भी चीज से नियंत्रण नहीं होते हैं. खबरों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है और यह एक समस्या है.अंततः इससे देश का नाम बदनाम होता है.’

सुप्रीम कोर्ट सोशल मीडिया तथा वेब पोर्टल्स समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए हाल में लागू सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों की वैधता के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों से लंबित याचिकाओं को सर्वोच्च अदालत में स्थानांतरित करने की केंद्र की याचिका पर छह हफ्ते बाद सुनवाई करने के लिए भी राजी हो गया.

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा ने सुप्रीम कोर्ट की इन चिंताओं का जवाब दिया कि नए सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2021, जिसके खिलाफ उच्च न्यायालयों में कई याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है, के तहत इन मुद्दों का ध्यान रखा गया है.

उन्होंने कहा कि न केवल सांप्रदायिक, बल्कि मनगढ़ंत खबरें भी इसी तरह से फैलाई जाती हैं.

शीर्ष अदालत ने सोशल मीडिया और वेब पोर्टल सहित ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने के लिए नए अधिनियमित आईटी नियमों के मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों से खुद को याचिकाओं को स्थानांतरित करने की केंद्र की याचिका पर छह सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की.

इसके अलावा न्यायालय ने जमीयत को अपनी याचिका में संशोधन की अनुमति दी और उसे सॉलिसिटर जनरल के जरिये चार हफ्तों में केंद्र को देने को कहा, जो उसके बाद दो सप्ताह में जवाब दे सकते हैं.

सुनवाई शुरू होने पर मेहता ने याचिकाओं पर सुनवाई से दो हफ्तों का स्थगन मांगा. पिछले कुछ आदेशों का जिक्र करते हुए पीठ ने केंद्र से पूछा कि क्या उसने सोशल मीडिया पर ऐसी खबरों के लिए कोई नियामक आयोग गठित किया हे.

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 03 Sep 2021 22:15:20 +0000
मद्रास हाईकोर्ट के प्रेस परिषद गठन के आदेश के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैंः मीडिया संगठन https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/177-2021-09-03-22-14-06.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/177-2021-09-03-22-14-06.html

मद्रास हाईकोर्ट ने फेक न्यूज़ और फ़र्ज़ी पत्रकारों की समस्या से निपटने के लिए 19 अगस्त को तमिलनाडु सरकार को तीन महीने के भीतर प्रेस परिषद के गठन का आदेश दिया था.

हाईकोर्ट ने इस प्रस्तावित परिषद को व्यापक अधिकार दिए हैं, जिसमें राज्य के प्रेस क्लबों, पत्रकार संघों या यूनियन को मान्यता देने का अधिकार भी शामिल है. पत्रकार संगठनों का कहना है कि इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित हो सकती है.

समाचार एवं पत्रकार संगठनों ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को लेकर चिंता जताई है, जिसमें ब्लैकमेलिंग जैसी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल फर्जी पत्रकारों से निपटने की बात कही गई थी.

संगठनों का कहना है कि अदालत के इस आदेश का अनापेक्षित खामियाजा भुगतना पड़ सकता है और इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित हो सकती है और यह वास्तविक पत्रकारों के अधिकारों को हानि पहुंच सकता है.

मद्रास हाईकोर्ट ने 19 अगस्त के आदेश में तमिलनाडु सरकार से राज्य प्रेस परिषद का गठन करने को कहा था.

इस प्रस्तावित तमिलनाडु प्रेस परिषद (पीसीटीएन) की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज करेंगे और इसके सदस्यों में अनुभवी पत्रकार और सेवानिवृत्त आईएएस और आईपीएस अधिकारी होंगे.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट ने इस प्रस्तावित संगठन को व्यापक अधिकार दिए हैं, जिसमें राज्य में प्रेस क्लबों, पत्रकार संघों या यूनियन को मान्यता देने का अधिकार शामिल है.

अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘इसके साथ ही यह परिषद इन प्रेस क्लबों, यूनियन या एसोसिएशन में चुनावों भी कराएगा.’

पीठ ने अपने आदेश में कहा था, ‘प्रेस परिषद द्वारा हर एसोसिएशन में एक निश्चित अवधि के भीतर चुनाव कराया जाना चाहिए और ऐसा नहीं होने पर कोई भी पत्रकार निकाय स्वत: ही परिषद के अधिकार क्षेत्र में आ जाएगा. इसके साथ ही अब सरकार को सीधे पत्रकारों को मकान आवंटित करने या उन्हें बस पास देने की मंजूरी नहीं होगी. इन लाभ के लिए अब आवेदन प्रेस परिषद के पास जाएगा और उचित आकलन के बाद ही इन्हें जारी किया जाएगा.’

पीठ ने कहा, ‘प्रेस परिषद के पास फर्जी पत्रकारों की पहचान करने और उनके खिलाफ संबंधित अधिकार क्षेत्र के पुलिस थानों में शिकायत दर्ज कराने की शक्ति होगी. फर्जी पत्रकारों के बारे में आमजन भी अपनी शिकायतें वेलफेयर बोर्ड को भेज सकते हैं, जिसकी जांच होने पर इस तरह के फर्जी पत्रकारों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी, क्योंकि इस तरह के पत्रकार समाज के लिए खतरे की तरह हैं.’

इसके साथ ही राज्य सरकार को प्रेस स्टिकर, पहचान पत्र जारी करने या मीडिया संगठनों को दिए जाने वाले अन्य लाभ तब तक देने की मंजूरी नहीं होगी, जब तक मीडिया संगठन अपने कर्मचारियों की संख्या, उनका वेतन या कर भुगतान की जानकारी न दे.

आदेश में कहा गया, ‘राज्य सरकार/प्रेस परिषद प्रिंट मीडिया, पत्रिकाओं या दैनिक समाचार पत्रों को तब तक प्रेस पहचान पत्र या मीडिया स्टिकर जारी नहीं करेगा, जब तक यह प्रमाण उपलब्ध नहीं कराया जाए कि उनके दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक समाचार पत्रों या पत्रिकाओं का सर्कुलेशन कम से कम 10,000 कॉपी है और इसी सर्कुलेशन के अनुपात के आधार पर प्रेस आईडी कार्ड की संख्या को बढ़ाया जा घटाया जाएगा.’

अदालत ने राज्य सरकार से इन निर्देशों का पालन करने और चार हफ्ते के भीतर रिपोर्ट दर्ज करने को कहा है.

पत्रकारों और उनके पत्रकार संगठनों ने चिंता जताई

द हिंदू ने संपादकीय में गैरकानूनी और गलत गतिविधियों में शामिल पत्रकारों की समस्याओं को वास्तविक समस्या बताने से सहमति जताते हुए कहा कि अदालत ने एक परिषद का गठन कर उसे शक्तियां देकर कुछ ऐसा किया है, जो आमतौर पर कानून द्वारा व्यापक विचार-विमर्श के बाद किया जाता है.

संपादकीय में कहा गया कि अदालत ने यह आदेश साफ मंशा से दिया है, लेकिन यह काफी चौंकाने वाला है कि न्यायिक निर्देश के द्वारा इस तरह के दूरगामी उपाय की मांग की गई.

वरिष्ठ पत्रकार एएस पनीरसेल्वम ने द न्यूज मिनट को बताया कि यह आदेश फर्जी पत्रकारों, एजेंडा आधारित खबरें आदि को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता और फेक न्यूज को फिल्टर करने की प्रक्रिया को भी जटिल बनाता है.

उन्होंने अदालत की मंशा की सराहना करते हुए कि आदेश पत्रकारों को लाभ और पत्रकार निकायों के प्रबंधन जैसे बाहरी कारकों को पत्रकारिता की गुणवत्ता और इसके कंटेंट जैसी मुख्य चिंताओं में मिला देता है.

उन्होंने कहा कि अगर अदालत का उद्देश्य फर्जी पत्रकारिता को खत्म करना है तो मीडिया के लिए अधिक सख्त और कठोर नियामक ढांचा बनाने के बजाय अलग दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए.

 

वहीं, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन ने जारी बयान में कहा कि वह फेक न्यूज और फर्जी पत्रकारों से निपटने के लिए अदालत की चिंता को समझ सकते हैं लेकिन यह भी देखना होगा कि इन उपायों से मीडिया को ही नुकसान नहीं पहुंचे.

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 03 Sep 2021 22:11:46 +0000
7th Pay Commission: इन सरकारी कर्मचारियों को मिली सौगात! जारी किया गया फंड https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/176-7th-pay-commission.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/176-7th-pay-commission.html

7th Pay Commission 7th CPC Latest News, Uttar Pradesh Government Employees: महामारी की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल-मई के बीच राज्य में पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के चलते जान गंवाने वाले कर्मचारियों को इसका फायदा मिलेगा।

7th Pay Commission 7th CPC Latest News, Uttar Pradesh Government Employees: कोरोना महामारी के दौरान जान गंवाने वाले सरकारी कर्मचारियों को मुआवजा जारी किया है। राज्य सरकार ने 2 हजार कर्मचारियों के लिए मुआवजे के रूप में 600 करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड जारी किया है। सरकार ने कहा है कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान अप्रैल-मई के बीच राज्य में पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के चलते जान गंवाने वाले कर्मचारियों को इसका फायदा मिलेगा।

राज्य सरकार के 26 अगस्त को जारी आदेश में राज्य चुनाव आयोग को 606 करोड़ रुपये हस्तांतरित करने और जिला मजिस्ट्रेटों को राज्य सरकार के 2000 से ज्यादा कर्मचारियों (जिनकी मृत्यु हो गई) के परिवारों को 30 लाख रुपये ट्रांसफर करने का आदेश दिया है।

केंद्रीय कर्मचारियों के लिए बड़ी खुशखबरी, महंगाई भत्ता 17 से बढ़कर 28%

न्यूज 18 में छपी खबर के मुताबिक यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह द्वारा हस्ताक्षरित आदेश में कहा गया है, ‘जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) एक सप्ताह के भीतर मृतक कर्मचारियों के परिजनों के बैंक खातों में आरटीजीएस के माध्यम से यह फंड ट्रांसफर करेंगे।’ इस आदेश को राज्य चुनाव आयोग और सभी डीएम को भेजा गया है।

आदेश में उन सभी 2128 राज्य सरकार के कर्मचारियों के नाम सूचीबद्ध किए गए हैं, जिनकी पंचायत चुनाव ड्यूटी पर रहने के बाद मृत्यु हो गई थी। इनमें से 2097 कर्मचारियों की मृत्यु कोविड-19 और 31 कर्मचारी गैर-कोविड कारणों से हुई थी।

हाल में उत्तर प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों और पेंशनर्स को महंगाई भत्ते (डीए) पर भी सौगात दी है। सरकार ने एक जुलाई 2021 से राज्‍य में सरकारी कर्मचारियों को अब 28 फीसद महंगाई भत्‍ता दिया जा रहा है, जिससे 16 लाख सरकारी कर्मचारी और 12 लाख पेंशनर्स लाभान्वित हो रहे हैं।

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 03 Sep 2021 22:05:38 +0000
दिल्ली दंगाः उमर ख़ालिद के वकील बोले- टीवी कार्यक्रम की स्क्रिप्ट जैसी है चार्जशीट, इसे बनाने वाला सांप्रदायिक https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/175-2021-09-03-22-01-58.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/175-2021-09-03-22-01-58.html

उमर खालिद के वकीलल ने कोर्ट में कहा कि उनके खिलाफ फाइल चार्जशीट पुलिस की कोरी कल्पना है और यह किसी टीवी स्क्रिप्ट की तरह लिखी गई है।

दिल्ली की एक अदालत में दंगों को लेकर सुनवाई के दौरान जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद के वकील ने कहा कि इस चार्जशीट में जिस तरह से सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई है, यह दिखाता है कि रिपोर्ट बनाने वाले अधिकारियों के दिमाग में ‘सांप्रदायिकता’ भरी हुई थी। ख़ालिद के वकील त्रिदीप पाइस ने यह भी कहा कि चार्जशीट ‘फैमिली मैन’ या किसी टीवी प्रोग्राम की स्क्रिप्ट जैसी है।

यह सुनवाई ट्रायल कोर्ट में चल रही थी। कोर्ट अब सोमवार को फिर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करेगा। आज की सुनवाई के दौरान उमर ख़ालिद के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल पर बिना किसी तथ्य के इतने सारे आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने कहा, ‘चार्जशीट को पढ़कर लगता है कि यह रात 9 बजे वाले टीवी शो की स्क्रिप्ट है। यह कोरी कल्पना पर आधारित है।’

पाइस ने गवाहों पर भी सवाल उठाए और कहा कि उनसे झूठे बयान दिलाए जा रहे हैं। यह खालिद के खिलाफ षड्यंत्र है। चार्जशीट का एक हिस्सा पढ़ते हुए वह बोले, ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, ये कहां से मिला। ऐसा लग रहा है कि टीवी प्रोग्राम की स्क्रिप्ट लिखी गई है। 2016 में खालिद पर जो केस दर्ज किया गया था उसकी चार्जशीट में कहीं भी भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाने की बात नहीं थी।’

वकील ने कहा कि एंटी-सीएए प्रोटेस्ट को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई है। दिल्ली पुलिस ने यह काम किया है। बता दें कि दिल्ली दंगे के मामले में उमर खालिद के खिलाफ यूएपीए, आर्म्स ऐंक्ट और प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टु पब्लिक प्रॉपर्टी ऐक्ट 1984 के तहत चार्जशीट फाइल की गई है।

कई आरोपी बरी
दिल्ली दंगों को लेकर पुलिस द्वारा की गई जांच पर ही कोर्ट ने सवाल खड़े कर दिए हैं। कोर्ट ने पुलिस को फठकार लगाते हुए कहा कि इतिहास इस दंगे को पुलिस की विफलता के तौर पर याद रखेगा। पुलिस ने कोर्ट की आंख में पट्टी बांधने का काम किया है। कोर्ट ने इस मामले में पूर्व आप पार्षद ताहिर हुसैन के भाई को बरी कर दिया। उनके साथ तीन अन्य आरोपियों को भी कोर्ट ने बरी कर दिया।

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 03 Sep 2021 21:59:49 +0000
योगी सरकार पर बरसे अखिलेश, कहा- बाढ़ से जनता परेशान लेकिन BJP के पास समय नहीं, नेता प्रचार में व्यस्त https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/174-bjp.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/174-bjp.html

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में बाढ़ की स्थिति के बीच योगी सरकार पर निशाना साधा है।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में बाढ़ की स्थिति के बीच योगी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि बाढ़ में फंसे लोग जान माल बचाने की गुहार लगा रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी आयोजनों और उत्सव में मशगूल है। गोरखपुर में बाढ़ की स्थिति पर चिंता जताते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि गोरखपुर में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। 6 नदियों उफान पर है लेकिन सरकार की तरफ से कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है।

अखिलेश यादव ने कहा कि गोरखपुर में भरवलिया-बसावनपुर रिंग बांध टूट चुका है। गोरखपुर से वाराणसी और सनौली को जाने वाली रास्ते पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। यहां तक कि आमी नदी का पानी इंडियन ऑयल के प्लांट में घुस चुका है लेकिन प्रदेश में राहत कार्य नहीं चल रहे हैं। अखिलेश ने कहा कि बाढ़ में फंसे लोगों को निकालने की कोई व्यवस्था सुचारु नहीं है।

अखिलेश यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सब कुछ भगवान भरोसे है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से कोरोना काल में भाजपा नेताओं ने कोई सुध नहीं ले रही थी, उसी तरफ अब दूसरी बीमारियों के प्रकोप के बीच दूसरे कामों में व्यस्त है। सपा प्रमुख ने कहा कि बीजेपी सरकार संवेदनशून्य हो चुकी है, वह जनता को चुनावी झांसे में फंसाने की योजना बना रही है। लेकिन जनता ने तय कर लिया है कि इस बार सपा को ही वोट देंगे।

बाढ़ की स्थिति: गोरखपुर में नदियों के बढ़ते जलस्तर के साथ आस-पास के जिले के कई बांध खतरे की जद में आ गए हैं। कहीं बांध दरक रहे हैं तो कहीं रिसाव हो रहा है। नेपाल से जोड़ने वाले सोनौली हाइवे पर चिउंटहा गांव के पास करीब एक फुट पानी भर गया है। जिले के 250 से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। आवागमन के लिए करीब 400 नावों का प्रबंध किया गया है। बाढ़ से 26 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं।

बाढ़ प्रभावित इलाकों में CM योगी का दौरा: इधर सीएम योगी आदित्यनाथ ने आज दोपहर गोंडा, बहराइच, बलरामपुर जिले में बाढ़ प्रभावित इलाकों का जायजा लिया। उन्होंने बाढ़ राहत केंद्रों का भी दौरा किया। सीएम योगी के तय कार्यक्रम के मुताबिक 2 बजे बहराइच पहुंचे यहां से वह रात तक कई जिलों में बाढ़ और रात कार्य का जायजा लेंगे।

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 03 Sep 2021 21:54:18 +0000
ह्यूमन राइट्स ने यूपी, बिहार और केंद्र सरकार को नोटिस भेजा; भास्कर की रिपोर्ट शेयर कर प्रियंका बोलीं- हाईकोर्ट के जज करें UP में मौतों की जांच https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/173-up.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/173-up.html

उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे शवों को दफन करने और प्रवाहित करने के 'दैनिक भास्कर' के खुलासे के बाद हलचल तेज हो गई है। नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन (NHRC) ने पूरे मामले को संज्ञान में लिया है।

उत्तर प्रदेश, बिहार और केंद्र सरकार को आयोग ने नोटिस जारी कर 4 हफ्तों में जवाब मांगा है। आयोग ने कहा कि प्रशासन नदियों में शवों और अधजले शवों को गंगा में प्रवाहित करने को लेकर लोगों को समझाने में फेल रही है। यही कारण है कि आज भी लोग शवों को गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं। ये नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा प्रोजेक्ट की गाइडलाइन के खिलाफ है।

योगी सरकार हरकत में, मॉनिटरिंग का आदेश
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी जिलों के अफसरों को नदियों के किनारे मॉनिटरिंग करने का आदेश दिया है। योगी ने कहा कि अफसर खुद देखें की कोई शव नदी में न प्रवाहित किया जाए और न ही घाट किनारे दफन हो। इसके लिए हर जिले में नदी किनारे टीमें तैनात की जाए। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम नदियों में जानवरों तक को नहीं फेंकते हैं, इससे जल प्रदूषण फैलता है। इसलिए हमें सख्ती से शवों का जल प्रवाह भी रोकना होगा।

उधर, दैनिक भास्कर की खबर को शेयर करते हुए कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया है। प्रियंका ने 7 मई को 'दैनिक भास्कर' डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित खबर 'UP के 6 शहरों से LIVE रिपोर्ट: वाराणसी में सड़कों पर दम तोड़ रहे मरीज, गोरखपुर में दिन-रात जल रहीं चिताएं; लखनऊ में हर पल सांसों के लिए जंग' के ग्राफिक्स को शेयर करते हुए यूपी में कोरोना से हो रहीं मौतों की हाईकोर्ट के जज से जांच कराने की मांग की है।

प्रियंका बोलीं- सरकार अपनी इमेज बनाने में जुटी है
प्रियंका ने सोशल मीडिया पर लिखा, 'बलिया, गाजीपुर में शव नदी में बह रहे है और उन्नाव में नदी के किनारे सैकड़ों शवों को दफनाया जा रहा है। लखनऊ, गोरखपुर, झांसी, कानपुर जैसे शहरों में मौत के आंकड़े कई गुना कम करके बताए जा रहे हैं। सरकार अपनी इमेज बनाने में व्यस्त है और जनता की पीड़ा असहनीय हो चुकी है। इन मामलों पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में तुरंत न्यायिक जांच होनी चाहिए।' पढ़िए प्रियंका ने किस खबर को शेयर किया...

 

अखिलेश यादव ने भी सरकार पर बोला हमला
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखते हुए राज्य सरकार पर हमला बोला है। अखिलेश ले लिखा, 'यह बहती अस्थियों पर सरकार की जवाबदेही तय होनी चाहिए, आपने लोगों को बुरे हालात में छोड़ दिया। गंगा में तैरती हुई लाशें एक आंकड़ा नहीं है वह किसी के माता-पिता भाई और बहन हैं। जो कुछ हुआ वह आपको अंदर से हिला देगा। सरकार को जवाब देना चाहिए, आखिर लोगों को इतनी बुरी हालात में क्यों छोड़ दिया गया?

दफन शवों और प्रवाहित करने का भास्कर ने किया था खुलासा
दैनिक भास्कर ने ही उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात, कानपुर, उन्नाव, गाजीपुर, बलिया में बड़ी संख्या में शवों को दफन किए जाने और नदी में प्रवाहित किए जाने की खबरों का खुलासा किया था

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 14 May 2021 15:54:04 +0000
यूपी: 14 स्वास्थ्य केंद्र प्रमुखों ने प्रशासन पर लगाया उत्पीड़न का आरोप, इस्तीफ़े की पेशकश https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/171-14.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/171-14.html

उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले का मामला. प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के जिला महासचिव ने कहा कि पिछले साल से चौबीसों घंटे काम करने के बावजूद हमें नियमित रूप से परेशान किया जा रहा है और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जेल भेजने की धमकी भी दी जा रही है. वे हम पर ज़िम्मेदारी से काम नहीं करने का झूठा आरोप लगाकर डांटते हैं.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में 14 स्वास्थ्य केंद्रों के अधीक्षकों ने बुधवार को प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों पर कथित तौर पर उनका उत्पीड़न करने और उनके साथ गलत व्यवहार का आरोप लगाते हुए अपने पदों से हटने की पेशकश की.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इससे एक दिन पहले ही जिला प्रशासन ने फतेहपुर चौरासी और असोहा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारियों को हटा दिया था.

हालांकि, जिला प्रशासन ने आरोप से इनकार किया और दावा किया कि दोनों अधीक्षकों को नीति के अनुसार स्थानांतरित कर दिया गया था.

इस मुद्दे के समाधान के लिए जिलाधिकारी रविंद्र कुमार ने 14 स्वास्थ्य केंद्रों के अधिकारियों के साथ बैठक करने की बात कही है.

प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के जिला महासचिव डॉ. संजीव कुमार ने कहा, ‘हमें यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया गया है, क्योंकि पिछले साल से चौबीसों घंटे काम करने के बावजूद हमें नियमित रूप से परेशान किया जा रहा है और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जेल भेजने की धमकी भी दी जा रही है. वे हम पर जिम्मेदारी से काम नहीं करने का झूठा आरोप लगाकर डांटते हैं.’

वह गंज मुरादाबाद स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक भी हैं और उन 14 में से हैं, जिन्होंने इस्तीफे की पेशकश की है. 14 में से चार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के अधीक्षक हैं, जबकि 10 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभारी हैं.

डॉ. संजीव कुमार ने दावा किया कि असोहा और फतेहपुर चौरासी केंद्रों के अधीक्षकों को खुद का बचाव करने का मौका दिए बिना हटा दिया गया था.

इन मुद्दों को जिलाधिकारी के साथ बैठक में उठाने की बात कहते हुए डॉ. कुमार दावा करते हैं, ‘दोनों स्वास्थ्य केंद्रों के अधीक्षक ईमानदारी के साथ अपना काम कर रहे थे. फतेहपुर चौरासी के अधीक्षक डॉ. प्रेम चंद कोविड पॉजिटिव हैं. प्रशासन ने उनसे स्पष्टीकरण व जवाब मांगे बिना कार्रवाई की.’

उन्नाव के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. आशुतोष कुमार ने कहा कि वह नहीं जानते थे कि जिला प्रशासन से अधीक्षक नाराज थे.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की हरकत करने से पहले उन्हें अपनी समस्या मुझसे साझा करनी चाहिए थी. मुझे आज शाम को इस मामले के बारे में पता चला जब मैं अपने कार्यालय में वापस लौटा. मैंने इसके बारे में जिलाधिकारी से बात की और उन्होंने बैठक बुलाई है. हमें उम्मीद है कि मामला जल्द सुलझ जाएगा.’

सीएमओ ने दावा किया कि हर किसी के काम की निगरानी कई स्तरों पर और कभी-कभी सख्ती से की जाती है, लेकिन कोई किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करता है.

उन्होंने कहा, ‘स्वास्थ्य केंद्रों के दो प्रभारियों को स्थानांतरण नीति के अनुसार हटा दिया गया था. प्रदर्शन के अनुसार कार्रवाई की गई.’

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 14 May 2021 14:49:48 +0000
'महामारी में मदद करने वाले फरिश्तों को शिकार बना रही मोदी सरकार', दिल्ली पुलिस ने की बी वी श्रीनिवास से पूछताछ https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/170-2021-05-14-14-49-47.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/170-2021-05-14-14-49-47.html

दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारी शुक्रवार को भारतीय युवा कांग्रेस (आईवाईसी) के कार्यालय में यह जानने के लिए पहुंचे कि आईवाईसी कोविड रोगियों के लिए आवश्यक दवाएं, ऑक्सीजन सिलेंडर और कई अन्य चीजें कैसे उपलब्ध करा रही है।

दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारी शुक्रवार को भारतीय युवा कांग्रेस (आईवाईसी) के कार्यालय में यह जानने के लिए पहुंचे कि आईवाईसी कोविड रोगियों के लिए आवश्यक दवाएं, ऑक्सीजन सिलेंडर और कई अन्य चीजें कैसे उपलब्ध करा रही है। आईवाईसी सदस्यों के अनुसार, दिल्ली पुलिस अपराध शाखा की टीम के कुछ अधिकारी सुबह करीब 11 बजे मध्य दिल्ली के रायसीना रोड स्थित आईवाईसी कार्यालय पहुंचे।

 आईएएनएस के अध्यक्ष श्रीनिवास बी.वी. ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "वे इस बारे में पूछताछ करने आए थे कि हम अदालत में दायर याचिका के आधार पर संकट में लोगों की मदद कैसे कर रहे हैं।" उन्होंने कहा कि पुलिस के साथ विवरण साझा किया गया है।

आईवाईसी कार्यकर्ताओं के अनुसार, पुलिस ने उनसे पूछा - वे कोविड -19 महामारी से जूझ रहे लोगों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर, कई दवाएं, एम्बुलेंस सेवाओं का प्रबंधन और भोजन कहां से ला रहे हैं। आईवाईसी ने कोविड से प्रभावित लोगों की मदद के लिए हैशटैग एसओएसआईवाईसी अभियान शुरू किया है। 

इस पूछताछ पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट करके कहा, 'मदद करने वाले साथियों और युवा कांग्रेस अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास को दिल्ली पुलिस भेज कोरोना के मरीज़ों की मदद से रोकना, मोदी सरकार का भयावह चेहरा है, ऐसी घृणित बदले की कार्यवाही से न हम डरेंगे, न हमारा जज़्बा टूटेगा, सेवा का संकल्प और दृढ़ होगा।'

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने #IStandWithIYC के साथ ट्वीट किया कि बचाने वाला हमेशा मारने वाले से बड़ा होता है।

 वहीं, कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि हमारे कार्यकर्ताओं को डराया जा रहा है, जो आम आदमी की मदद कर रहे हैं, सरकार को पता चल गया है कि वह बेनकाब हो रही है, वे गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष के ठिकाने पर छापेमारी क्यों नहीं कर रहे हैं, जिनके पास से 5 हजार रेमडेसिविर मिला था।

गौरतलब है कि आईवाईसी ने अपने कार्यालय में एक वॉर रूम स्थापित किया है, जिसमें सोशल मीडिया के माध्यम से मिलने वाले अनुरोधों से निपटने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां, परिवारों को भोजन और बेघर और एम्बुलेंस सेवाओं आदि में मदद की जाती ह

बता दें कि दिल्ली से कांग्रेस के पूर्व विधायक मुकेश शर्मा से भी क्राइम ब्रांच ने कल पूछताछ की थी। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक दिलीप पांडेय से पूछताछ की थी। इस दौरान आप विधायक दिलीप पांडेय ने केंद्र पर महामारी के दौरान लोगों की मदद करने के लिए परेशान करने का आरोप लगाया था।

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 14 May 2021 14:46:30 +0000
कोविड संकट के लिए ‘सिस्टम’ नहीं, मोदी का इसे व्यवस्थित रूप से बर्बाद करना दोषी है: अरुण शौरी https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/167-2021-05-14-11-43-58.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/167-2021-05-14-11-43-58.html

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने द वायर  से बात करते हुए देश के कोविड संकट के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि सरकार लोगों को उनके हाल पर छोड़ चुकी है, ऐसे में अपनी सुरक्षा करें और एक दूसरे का ख़याल रखें.

नई दिल्ली: बीते सात सालों से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी नरेंद्र मोदी सरकार के बड़े आलोचक रहे हैं. द वायर  के साथ बातचीत में उन्होंने देश में कोविड-19 गंभीर स्थिति पर चर्चा की. सरकार के समर्थकों द्वारा इसे ‘सिस्टम’ की विफलता बताने पर शौरी ने  कहा कि मोदी इसकी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं. बातचीत के प्रमुख अंश.

भारत में रोजाना संक्रमण के जितने मामले आ रहे हैं, उतने पूरे विश्व में मिलाकर नहीं आ रहे हैं, वहीं देश में हो रही मौतें दुनियाभर की करीब तिहाई हैं. और ये सब आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से हैं, जो कहा  कि असल से कम ही हैं. देश के मौजूदा हालात को लेकर क्या कहेंगे?

अरुंधति रॉय ने इसके लिए बिल्कुल ठीक शब्द इस्तेमाल किए हैं- ‘मानवता के खिलाफ अपराध.’

‘अपराध’ शब्द दिखाता है कि यह किसी के द्वारा किया गया है, लेकिन आज सत्ता प्रतिष्ठान का जो कहना है, और जिसे मीडिया के एक बड़े वर्ग द्वारा दोहराया भी जा रहा है वो यह है कि ये किसी एक व्यक्ति या एक समूह का किया-धरा नहीं है, बल्कि इसका जिम्मेदार ‘सिस्टम’ है.

और इस ‘सिस्टम’ की जिम्मेदारी किसकी है? बेचारे पंडित नेहरू की? अंग्रेजों की? या उससे भी बेहतर मुगलों की?

क्या समस्या ये है कि ‘सिस्टम’ ने हमें सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग दिए हैं? या ये कि आज उनका गलत इस्तेमाल हो रहा है.

आप एक पल के लिए गुजरात के बारे में सोचिये. क्या यह ऑक्सीजन की कमी से जान गंवा रहे मरीजों के मामले में, अस्पतालों में आग लगने के मामलों में पूरे देश से कहीं बेहतर कर रहा है? और भाजपा कितने सालों से इस राज्य में सत्ता में है? कितने सालों तक गुजरात का ‘सिस्टम’ प्रधानमंत्री के हाथों में था.

यह ‘सिस्टम’ नहीं है. और जो एक शब्द चल रहा है, यह ‘सिस्टेमैटिक’ (व्यवस्था की) विफलता नहीं है. यह सिस्टम का व्यवस्थित तरीके से बर्बाद किया जाना है, जो इस स्थिति का जिम्मेदार है.

तो आपके हिसाब से सिस्टम की इस व्यवस्थित बर्बादी के लिए कौन जिम्मेदार है?

निश्चित तौर पर जो शासन संभाल रहा है. जब चुनावों में स्पष्ट तौर पर धोखाधड़ी होती है- जब भाजपा एक सांप्रदायिक अभियान छेड़ती है, जब चुनाव को सात चरणों तक खींचा जाता है- तब क्या इसका कारण ये है कि संविधान ने यह बताया था कि चुनाव आयोग होना चाहिए.

या फिर वो भ्रष्ट तरीका, जिससे आयोग संभालने वाले अपना कर्तव्य निभाते हैं? जब चुनावी बॉन्ड के साफ दिख रहे छल पर सुप्रीम कोर्ट अपनी आंखें मूंद लेता है, तब क्या वो ‘सिस्टम’ जिम्मेदार है जो शीर्ष अदालत की व्यवस्था देता है या फिर वो मुख्य न्यायाधीश और बाकी जज जो फैसले लेते हैं?

और केवल वो नहीं जो चुनाव आयोग या अदालतों में बैठे हैं, बल्कि वो भी जिन्होंने उन्हें वहां पहुंचाया और वो भी, जो तमाम तरीकों से यह सुनिश्चित करते हैं कि ये नामित किए गए लोग वही निर्णय लें, जो इन्हें यहां पहुंचाने वालों के लिए फायदेमंद साबित हों.

तो जब आज आप संस्थानों की हालत देखते हैं तो इसके लिए मौजूदा सत्ताधीश जिम्मेदार हैं, जिन्होंने इन्हें रीढ़विहीन जी हुजूरी करने वालों से भरा है- और इसका साफ अर्थ है कि प्रधानमंत्री, उनके अलावा किसी का कोई महत्व नहीं है.

22 अप्रैल 2021 को दिल्ली का एक श्मशान घाट. (फोटो: रॉयटर्स)

22 अप्रैल 2021 को दिल्ली का एक श्मशान घाट. 

मैं आपकी बात समझता हूं लेकिन वर्तमान कोविड-19 संकट, ऑक्सीजन की अनुपलब्धता, दूसरी लहर का अनुमान न लगा पाने, टीकाकरण अभियान को जीएसटी से भी खराब तरह से लागू करने में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट का कोई हाथ नहीं है. व्यवस्था के यूं धराशायी होने के बारे में क्या कहेंगे?

उन स्वास्थ्य मंत्री को किसने चुना, जिसने स्वेच्छा से ये घोषणा की कि कोरोना वायरस के खिलाफ ‘एंडगेम’ शुरू हो चुका है. कौन कह रहा था कि ऑक्सीजन की कमी नहीं है जब लोग इसके बिना मर रहे थे? कौन था जो मीडिया के सामने खड़े होकर रामदेव की दवाई यह कहकर लॉन्च कर रहा था कि यह ‘डब्ल्यूएचओ प्रमाणित’ है? ऐसे मंत्री को किसने चुना, जो राज्यों से उनके यहां बेहतर तरह से ऑक्सीजन ‘मैनेज’ करने को कह रहा था- मानो उन्हें यह करना चाहिए कि मरते हुए लोगों से कहें कि कम ऑक्सीजन लो?

लेकिन यह किसी असहाय स्वास्थ्य मंत्री या किसी और मंत्री का मसला नहीं है. याद कीजिए, फरवरी में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में खुद प्रधानमंत्री ने क्या कहा था- कि भारत ने कोविड-19 को परास्त कर दिया है और यह अब दुनिया को बचा रहा है. सिविल सेवाओं के महत्वपूर्ण पदों पर बिना रीढ़ के जी हुजूर किसने भरे हैं?

कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री को उनके चाटुकारों के किए और उनकी कही गई बातों के लिए दोषी नहीं ठहराना चाहिए.

देखिए, गलती न करें. जो चुनने का जिम्मा लेता है, वह ध्यान से उस व्यक्ति को चुनता है, जो समय आने पर चयनकर्ता के विश्व गुरु होने की घोषणा करता है (जैसा कि हर्षवर्धन ने मोदी को बताया) या उसे भारत के लिए ‘भगवान का तोहफा’ कहता है. (जैसा वेंकैया नायडू ने उन्हें कहा था)

उस संकल्प को याद करें, जो भाजपा के राष्ट्रीय निकाय ने प्रधानमंत्री के अद्वितीय, दूरदर्शी नेतृत्व को स्वीकार करते हुए पारित किया था, जिसने कोविड -19 पर विजय पा ली थी और भारत को दुनिया का रक्षक बना दिया था. क्या कोई मानता है कि आज भी कोई भाजपा है, जो प्रधानमंत्री से स्वतंत्र है? उस भाजपा के बारे में कुछ नहीं कहना जो अपनी कल्पना के बल पर एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने में सक्षम होगी? क्या किसी को लगता है कि डॉ. हर्षवर्धन मनमोहन सिंह के सुझावों का अश्लील और बेवकूफ़ जवाब दे सकते हैं?

क्या एक स्टेडियम का नाम सरदार पटेल से बदलकर नरेंद्र मोदी रखने के लिए राष्ट्रपति उत्तरदायी हैं? देश में प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950 काम करता है, जिसके अनुसार, प्रधानमंत्री के नाम का किसी भी संगठन या भवन या घटना के लिए इस्तेमाल लिखित रूप में उनकी या किसी नामित अधिकारी की अनुमति के बिना किया ही नहीं जा सकता है.

निश्चित तौर पर मोदी ही महत्वपूर्ण जगहों पर ऐसे लोगों के चयन के लिए जिम्मेदार है, लेकिन…

लेकिन उनकी जिम्मेदारी इससे अधिक की भी है! क्या इन डरे हुए चूहों में से किसी ने फरमान सुनाया कि आपको बड़ी-बड़ी  रैलियां करनी चाहिए? क्या ‘सिस्टम’ ने ऐसा हुक्म दिया था, क्या इन भयभीत चूहों में से एक ने आज्ञा दी थी कि आप कम संसाधनों को टीकाकरण और ऑक्सीजन संयंत्रों पर नहीं बल्कि अहंकारी परियोजनाओं- अपने लिए एक विमान, एक नया घर, एक नए राजपथ पर खर्च करें? 25,000 करोड़ रुपये इन परियोजनाओं पर खर्चे गए- चीन से आए उस प्रतिमा के ढांचे के 3,500 करोड़ रुपये की तो गिनती ही नहीं की है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. 

क्या आप मानते हैं, जैसा कि रामचंद्र गुहा ने द वायर के साथ हालिया साक्षात्कार में कहा है कि मौजूदा तबाही प्रधानमंत्री मोदी की ‘शासन शैली’ का प्रत्यक्ष परिणाम है.’ क्या हम उससे यह उम्मीद कर सकते हैं कि वह बंगाल के चुनाव परिणाम के चलते इसे बदलेंगे?

इस तरह की किसी भी चीज की अपेक्षा करना अति मूर्खता होगी. शासन की ‘वर्तमान शैली’ में कुछ ऐसा नहीं है जिसे आप आर्गेनाईजेशन चार्ट पर बक्से फेरबदल करके बदल सकते हैं. यह उनके स्वभाव में है. सरकार, कंपनियों आदि के प्रमुखों के साहित्य में डार्क ट्रायड (स्याह त्रयी) की बात कही गई है. इसके तीन तत्व हैं.

सबसे पहले, आत्ममुग्धता. इसका एक पहलू खुद नाम से स्पष्ट है: व्यक्ति खुद से ही प्यार करता है, वह खुद को ही इतना आकर्षक समझता है. यह ट्रंप में व्यापक रूप से स्पष्ट था. यहां आप इसे अपना नाम छपे सूट से लेकर स्टेडियम तक और टीकाकरण पैक पर उनकी तस्वीर में देखते हैं.

लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है. कहीं अंदर गहरे में इस आत्ममुग्ध व्यक्ति को पता होता है कि वह ऐसा नहीं है जैसा उसने खुद को बनाया है. और इसलिए वह बहुत नर्वस, असुरक्षित व्यक्ति है. वह खुद को लगातार संवार रहा है, बार-बार संवार रहा है. और इसी कारण से वह विशेषज्ञता से घबराया हुआ है. वह अनिवार्य रूप से औसत दर्जे के व्यक्तियों से खुद को घेर लेता है. वह खुद को एक इको चेंबर में बंद कर लेता है. और फिर आपको मिलती है वह ‘शासन प्रणाली’, जहां अनंत तक दूसरे दर्जे के व्यक्ति तीसरे को चुनते है, जिससे अव्यवस्था उत्पन्न होती है.

वह असुरक्षित है, उसे हर दिन खुद को आश्वस्त करना है कि वह अब भी सुंदर है, वह अब भी मजबूत है, और अब भी बाकी लोग उससे डरते हैं. वह उनसे बचाव न किए जा सकने वाली बातों का बचाव करवाता है- कल यह नोटबंदी थी, आज महामारी से ठीक से न निबट पाना है. यदि वे केवल बचाव कर रहे होते, जो सही होता, तो उससे भी यह साबित नहीं होता कि उनके पास अब ताकत नहीं है. वे सब उनसे डरते हैं, ये तब दिखता है जब वे घोषणा करते हैं कि नोटबंदी एक मास्टरस्ट्रोक था. ऐसा तब नजर आता है जब वर्तमान संकट के दौरान उठाए गए गलत क़दमों को दूरदर्शी नेतृत्व कहकर सराहा जाता है.

यही कारण है कि अपने सहयोगियों के लिए उनमें कोई इज्जत नहीं है, न ही लोगों के प्रति है. ‘क्या कहा तुमने, लोग मर रहे हैं? तो मुझे ऐसे समय पर अपना नया घर नहीं बनवाना चाहिए? हां, वे मर रहे हैं और मैं ऐसे में भी अपना नया घर बनवाऊंगा जब वे मर रहे हैं. क्या कर सकते हो तुम?

और दूसरा तत्व?

डार्क ट्रायड की दूसरी विशेषता मैकियावेलियनिस्म है. ऐसे व्यक्ति हर अवसर हर आदमी पर नजर रखते हैं. जैसे ही उनका किसी व्यक्ति, घटना से सामना होता है, उनके दिमाग में एक ही विचार आता है,’मैं इस व्यक्ति, घटना या आपदा का क्या इस्तेमाल कर सकता हूं?

देखिए कि किस तरह अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए एक भयानक संकट का उपयोग किया जाता है. याद कीजिए उन विपरीत तरीकों को जिनसे वे निज़ामुद्दीन मरकज़ और हाल ही में हुए कुंभ की भीड़ से निपटते हैं.

उस तरीके को देखिये, जिससे आज पीएम केयर्स फंड को वैध बनाने की मांग की गई है. यह देखिए कि किस तरह से राज्यों के माथे दोष मढ़ा जा रहा है और सत्ता को और केंद्रीकृत करने के लिए इस अव्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है. केंद्र घोषणा करता है, ’18 से ऊपर के सभी लोग टीका लगवा सकते हैं,’ लेकिन स्टॉक ही नहीं है, ‘हमने फैसला किया है कि आप सभी को टीका मिले लेकिन राज्य इस निर्णय को लागू नहीं कर रहे हैं. और इसलिए हम इस मामले को अपने हाथों में लेने के लिए मजबूर हैं… ‘

शब्दों के मायाजाल भी इसीलिए बिछाए जा रहे हैं. उनकी कोई पवित्रता नहीं है. सत्य कुछ निरपेक्ष नहीं है. आप वो कहते हैं जो सुविधाजनक है, उस समय जो सुविधाजनक होता है, आप वो जुमला निकाल देते हैं. कि आपने एक रेलवे स्टेशन पर चाय बेची है – तो क्या हुआ अगर उस समय स्टेशन नहीं था? कि आपके पास एक डिग्री है- तो क्या हुआ यदि यह एक ऐसे विषय में है जिसका कभी अस्तित्व नहीं था? तो क्या हुआ अगर यह तब छपी, जब डिग्री हाथ से लिखी जाया करती थीं, तो क्या हुआ अगर इसे एक ऐसे फॉन्ट में मुद्रित किया गया जो सालों बाद तक अस्तित्व में नहीं था? कि आप 25,000 फीट की ऊंचाई तक पैदल चले थे…

यह सब तब और आसान है कि यदि आप एक संस्कृति, एक ऐसे संगठन से आते हैं, जहां मिथकों को तथ्यों में ढाला जाता है. कि हजारों साल पहले हमारे पास रॉकेट और हवाई जहाज थे, कि हमारे पास प्लास्टिक सर्जरी थी, कि हमारे पास इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन था … फिर तो यह घोषित करना पूरी तरह से आसान है कि सिकंदर बिहार तक आया था और यह कि बिहारी वीरता ने उसे मध्य एशिया में वापस भेजा. आप ऐसी बातें आसानी से कह सकते हैं और जब सुविधाजनक हो उन गांधीजी का गुणगान भी कर सकते हैं, जो मानते थे कि सत्य ही ईश्वर है.

ऐसे व्यक्ति केवल घोषणा नहीं करते बल्कि एक दिन विश्वास करने लगते हैं कि हमने कोविड -19 पर जीत हासिल की है और वो भी पूरी तरह से हमारे ही प्रयासों से, कि हम आत्मनिर्भर बन गए हैं. और अगले दिन यह मान लेते हैं कि चालीस देशों ने हमें मुश्किल से निकालने के लिए मदद भेजी है जो भारतीय कूटनीति की सफलता का प्रतीक है.

और तीसरा?

तीसरा है मनोरोग, इसका सबसे बड़ा तत्व है पछतावे का नामोनिशान न होना. क्या पिछली बार प्रवासी मजदूरों के मामले में आपने जरा-सी भी ग्लानि देखी? पिछले चार महीनों में उनके दिए गए सैंकड़ो भाषणों में आपने उनके बारे में एक भी हमदर्दी का शब्द सुना जो ऑक्सीजन की कमी से मारे गए?

और हमें इस भुलावे में बिल्कुल नहीं रहना चाहिए कि इस खेप में बस एक मनोरोगी है. यह इनकी संस्कृति में है. देखिए, हरियाणा के मंत्री ने क्या कहा जब उन्हें बताया गया कि श्मशान घाट के दृश्यों से पता चलता है कि कोविड-19 से मरने वालों के आधिकारिक आंकड़े बहुत कम हैं. उन्होंने कहा, ‘इस मुद्दे पर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है, मरने वाले वापस नहीं आएंगे.’

इतिहास बताता कि इन विशेषताओं वाले नेता को लगता है कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है.

बिल्कुल सही बात है. आपको पता है कि ऐसे लोग रात को सोते कैसे हैं? बहुत आराम से! क्योंकि उन्होंने खुद को ये भरोसा दिला दिया होता है कि वे जो भी कर रहे हैं वो एक बड़े हित के लिए है. हम जैसे साधारण लोग जलती चिताओं को देखकर हिल जाते हैं और मरने वालों की संख्या को दबाए जाने के खिलाफ हो जाते हैं. लेकिन वह ऐसा कर रहे हैं कि ‘लोगों का मनोबल डूबने से बचा रहे.’

और इस तरह से सोचना, ‘सकारात्मक’ तौर से सोचना उनकी आदत में शुमार हो जाता है. हां, यहां तबाही आ रखी है. लेकिन दूसरी तरफ देखिए, क्या कोई लद्दाख के उन इलाकों के बारे में बात कर रहा है जिन्हें चीन ने खाली करने से मना कर दिया है? क्या कोई किसान आंदोलन की बात कर रहा है? यह तरीका है आगे बढ़ने का: ‘हमें सकारात्मकता फैलानी चाहिए,’ यह दत्तात्रेय होसबले कहते हैं जो आरएसएस के अगले प्रमुख होंगे.

यह सब कहां ख़त्म होता?

अंत में ऐसे नेता पूरी तरह खत्म हो जाते हैं. जिस तरह एक झूठ दूसरे झूठ के लिए मजबूर करता है, वैसे एक निरंकुश कदम अगले के लिए रास्ता बनाता है.

महामारी के दूसरी लहर के दौरान कानपुर का एक अस्पताल. (फोटो: पीटीआई)

महामारी के दूसरी लहर के दौरान कानपुर का एक अस्पताल. 

जो तस्वीर आप दिखा रहे हैं, वह बहुत सुखद नहीं है, ऐसे में नागरिकों को क्या करना चाहिए?

सबसे पहले और सबसे जरूरी तो यह कि हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए. नसीरुद्दीन शाह एक बेहद उम्दा कलाकार हैं, उन्होंने इसे बेहतरीन तरीके से कहा है- सवाल ये नहीं कि बस्तियां जलाईं किसने, सवाल है कि उसके हाथ में माचिस किसने दी?

दूसरा, इस बार आपराधिक तौर पर अपने फर्ज न निभाए जाने को याद रखिए- कर्तव्यों को ऐसे छोड़ दिया गया जहां आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से ही ढाई लाख लोगों ने अपनी जान गंवा दी. झूठों को याद रखिए. यह भी याद रखिए कि यह दुर्घटनावश नहीं हुआ है. यह सब उनके जींस में है. इस अपराध को दर्ज करिए, झूठों को लिखिए, जिससे अगली बार उन्हें जल्दी पहचान लिया जाए.

तीसरा, उन जगहों पर बाज़ की तरह नजर रखिए, जहां वे इस तबाही के जरिये अपना एजेंडा साध रहे हैं या साधेंगे. मसलन, शक्तियों का और अधिक केंद्रीकरण करने के लिए. इसे नाकाम करने के लिए इन तथ्यों को दुनिया के सामने रखना होगा. 1. उन्हें वैधता चाहिए- उनसे जो अभी उनके वश में नहीं है, उनसे जो भक्त या कमबख़्त नहीं हैं. 2. उनकी अक्षमता उन्हें बार-बार विदेश से मदद लेने के लिए मजबूर कर देगी. इसलिए दुनिया को राजी करें कि बिना शर्त मदद न करें. अन्य देशों को उन व्यावसायिक अवसरों से परे देखने के लिए तैयार करें, जो उन्हें भारत या चीन जैसे देश देते हैं.

चौथा, सत्ताधीशों के इस प्रोपगैंडा कि वे वो ये कर रहे हैं-वो कर रहे हैं, में न आएं. तथ्य यही है कि सरकार ने हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया है. खुद को बचाएं- मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, वैक्सीन, एक-दूसरे की मदद. सबसे बड़ा उदाहरण नर्सों और डॉक्टरों का है, गुरुद्वारों का है, उन वालंटियर्स का जो देशभर में काम कर रहे है- उसे अपनी प्रेरणा बनाएं.

पांचवा और सबसे जरूरी: जिस तरह इस आपदा ने हर आपदा की तरह कुछ बहुत अच्छी चीजें सामने लाई हैं, वहीं कुछ बहुत ख़राब बातें भी सामने आई हैं- दवाओं में मिलावट, कालाबाजारी, वो रिश्वतें जो अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन और अंतिम संस्कार के लिए दी गई हैं…  यह घृणास्पद लालच जलती हुई चिताओं की तरह ही सामने दिख रहा है. और हम खुद को गांधी और बुद्ध का देश कहते हैं. जब हम शासकों को सुधारने की बात करते हैं, तो हमें खुद को भी इस लालच से मुक्त करना चाहिए, हमारे बीच के लालचियों और अमानवीय लोगों को सामने लेकर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए.

 

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 14 May 2021 11:41:01 +0000
टीके की अनुपलब्धता पर क्या हमें ख़ुद को फांसी पर लटका लेना चाहिए: केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/165-2021-05-14-11-36-31.html https://hindimirror.net/index.php/en/component/k2/item/165-2021-05-14-11-36-31.html

केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा का यह बयान कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा राज्य में टीकाकरण की धीमी गति को लेकर राज्य और केंद्र सरकार की खिंचाई के बाद उनका यह बयान आया है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि कर्नाटक 18-44 आयु वर्ग के टीकाकरण को रोक रहा है, ताकि 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों, स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर को दूसरी खुराक दी जा सके.

बेंगलुरु: केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने बृहस्पतिवार को (चिढ़ते हुए) जानना चाहा कि क्या सरकार में बैठे लोगों को अदालत के आदेशों के अनुसार टीके के उत्पादन में नाकामी की वजह से खुद को फांसी पर लटका लेना चाहिए?

केंद्रीय मंत्री का यह बयान कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा बीते 11 मई को राज्य में टीकाकरण की धीमी गति को लेकर राज्य और केंद्र सरकार की खिंचाई के बाद उनका यह बयान आया है. हाईकोर्ट ने टीकाकरण की रफ्तार को परेशान करने वाला बताया था.

बीते 11 मई को कनार्टक हाईकोर्ट की पीठ ने कहा था कि अगर टीके की खुराक की पर्याप्त संख्या की खरीद के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए हैं, तो टीकाकरण के मूल उद्देश्य के विफल होने की संभावना है, जो कोविड-19 के प्रसार पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है.

हाईकोर्ट ने कर्नाटक सरकार से यह भी जानना चाहा था कि वह 45 वर्ष से अधिक आयु के 26 लाख लाभार्थियों को किस तरह से टीके उपलब्ध कराने वाली है, जबकि वैक्सीन की केवल 9.37 लाख खुराक उपलब्ध है.

गौड़ा ने बेंगलुरु में पत्रकारों से कहा, ‘अदालत ने अच्छी मंशा से कहा है कि देश में सबको टीका लगवाना चाहिए. मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि अगर अदालत कल कहती है कि आपको इतने (टीके) देने हैं और यह अगर न बन पाए, तो क्या हमें खुद को फांसी पर लटका लेना चाहिए?’

टीके की किल्लत के सवालों पर केंद्रीय मंत्री ने सरकार की कार्रवाई योजना पर जोर दिया और कहा कि इसके निर्णय किसी भी राजनीतिक लाभ या किसी अन्य कारण से निर्देशित नहीं होते हैं.

गौड़ा ने कहा कि सरकार अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करती आ रही है और उस दौरान कुछ कमियां सामने आई हैं.

मंत्री ने जानना चाहा, ‘व्यावहारिक रूप से कुछ चीजें जो हमारे नियंत्रण से परे हैं, क्या हम उसका प्रबंधन कर सकते हैं?’

उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ काम कर रही है कि एक या दो दिन में चीजें सुधरें और लोगों को टीका लगे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय मंत्री ने दावा किया, ‘पहले जब हमने 45 से अधिक के लिए टीकाकरण शुरू किया था तो टीकों की कोई बड़ी मांग नहीं थी और हमने सोचा था कि हम 18 से 45 आयु वर्ग समूह को भी हम टीका लगा सकते हैं. जैसे ही देश भर में कोरोना की दूसरी लहर बढ़ी, लोग टीके लगाने के लिए दौड़ पड़े. हम अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रहे हैं और चीजें एक-दो दिनों में ठीक हो जाएंगी.’

गौड़ा के साथ मौजूद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने दावा किया कि अगर व्यवस्था समय पर नहीं की जाती तो चीजें बदतर हो सकती थी.

रवि ने कहा, ‘यदि पहले से उचित व्यवस्था नहीं की गई होती तो मौतें 10 गुना या 100 गुना ज्यादा होतीं.’

रवि ने कहा, ‘लेकिन कोरोना वायरस के अकल्पनीय प्रसार के कारण हमारी तैयारी विफल रही.’

अदालतों द्वारा कोरोना वायरस के मुद्दे पर सरकार की खिंचाई करने पर रवि ने कहा, ‘न्यायाधीश सब कुछ जानने वाले नहीं होते हैं. हमारे पास जो कुछ भी उपलब्ध है, उसके आधार पर तकनीकी सलाहकार समिति यह सिफारिश करेगी कि कितना (टीकों का) वितरण किया जाना है. उनकी रिपोर्ट के आधार पर हम निर्णय करेंगे.’

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भाजपा नेताओं का यह बयान उस दिन आया जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने घोषणा की कि कर्नाटक अन्य राज्यों की उस श्रेणी में शामिल हो रहा है, जिन्होंने 18-44 आयु वर्ग के टीकाकरण को रोक दिया है, ताकि 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों, स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर के लिए दूसरी खुराक पर ध्यान केंद्रित किया जा सके.

कर्नाटक में कोरोना वायरस के चिंताजनक हालात हैं और रोजाना 40-50 हजार मामले आ रहे हैं. इसी के साथ टीके की मांग भी कई गुना बढ़ गई है.

राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, राज्य की ओर से तीन करोड़ टीके खरीदने के लिए ऑर्डर दिया गया और दो टीका निर्माताओं को भुगतान भी कर दिया गया.

बहरहाल, केवल सात लाख खुराक ही राज्य पहुंची.

कई टीकाकरण केंद्रों के सामने लोग कतारबद्ध खड़े होते हैं, लेकिन उन्हें वापस लौटना पड़ता है.

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info@indiamirror.net (Super User) National Fri, 14 May 2021 11:34:15 +0000